यह चमत्कार नहीं है लेकिन किसी को भी यह चमत्कार लग सकता है

 -रामकुमार सेवक 

फाजिल्का के महात्मा राजिंदर कटारिया जी को आज सुना |पहली बार सुना हो ऐसा तो नहीं है लेकिन उन्होंने जो कहा उस पर ध्यान देना चाहिए |

उन्होंने कनाडा में रह रही एक बच्ची का जिक्र किया |उस बच्ची का नाम तो कुछ भी हो सकता है |

जैसे कुछ वर्ष पहले अनेक व्यक्ति मुझसे मिलते थे जिनका नाम मुझे ज्ञात नहीं होता था |

वे इतनी गर्मजोशी से मिलते थे कि -भाई साहब ,आपका नाम क्या है .यह पूछने की मेरी हिम्मत ही न पड़ती थी |

पत्नी मुझसे पूछती कि इनका नाम क्या है तो मुझे कहना पड़ता कि-नहीं जानता |

वह आश्चर्य से कहती-मिल तो ऐसे रहे थे -जैसे सगे चाचा के लड़के हैं |

किसी का नाम क्या है ,इससे मुझे कुछ ख़ास फर्क नहीं पड़ता |

जैसे मेरा ही नाम अगर माता -पिता ने रामकुमार की जगह जाकिर हुसैन रखा होता तो मेरे अस्तित्व पर क्या फर्क पड़ता |मेरा अस्तित्व तो तब भी रहता इसलिए यह मत सोचिये कि उसका नाम क्या था | 

उसने जो सन्दर्भ दिया उसमें एक तर्क है जिसे हम वर्षों से दोहराते आ रहे हैं लेकिन कभी-कभी उसमें बहुत जान नज़र आती है |कभी कभी जान इसलिए नज़र आती है चूंकि मेरी मनोवस्था हमेशा एक जैसी नहीं रहती इसलिए तर्क को हमेशा तर्कसंगत मानने में कोई हर्ज़ नहीं |

आपके संपर्क का कोई व्यक्ति यदि विदेश में रहता हो तो कुछ तो भौगोलिक सीमाओं के असर रहते हैं और कुछ आर्थिक सीमायें भी रहती हैं चूंकि भारत की तुलना में वहां महंगाई बहुत ज्यादा है इसलिए हर एक को काम करना पड़ता है |

जो नौजवान वहां रह रहे हैं उन्हें लगातार काम मिलना चाहिए अन्यथा जीवन-मरण का प्रश्न पैदा हो सकता है चूंकि यह संसार मायावी है और माया के बिना इस दुनिया में गुजारा नहीं है |

उस युवक का काम छूट गया था |

भारत में रहते हुए संगत के साथ उसका जो नाता जुड़ गया था तो उसे संगत के अस्तित्व में  आशा की किरण दिखी |

सत्संग में हम जब जाते हैं तो सेवा और सुमिरन भी हो ही जाते हैं |यह एक बड़ा प्रश्न है कि इनसे उस युवक के लिए काम की गुंजाईश कैसे बनेगी ?    

वह सत्संग में गया ,उसके पास चूंकि काम नहीं था इसलिए उसे जब तक काम मिले.उसे  ,स्थानीय सत्संग भवन में सेवा में ही व्यस्त रहना जरूरी लगा |

वह सेवा में ही जुट गया इससे उसे मानसिक स्थिरता तो मिली ही और शुभ आशा भी जगी |

भवन की व्यवस्था के अनुसार जितनी अनुमति मिली उसने सेवा की |

बाबा हरदेव सिंह जी के श्रीमुख से मैंने अक्सर सेवादल रैली के अवसर पर सुना है कि सेवा का आनंद तो करने के साथ-साथ ही मिल रहा होता है |  

बहरहाल जब तक उसे काम नहीं मिला तब तक की व्यवस्था भवन के प्रबंधकों ने कर दी | उसे सेवा में आनन्द आ रहा था लेकिन यह व्यवस्था अस्थायी थी |

धीरे -धीरे स्थानीय महात्माओं ने इस युवक को दिल से स्वीकार कर लिया क्यूंकि उसके कार्यों में भक्ति की झलक मिलती थी |

एक दिन एक बहन ने उसके काम-काज के बारे में पूछा |उसने काम छूटने की सच्चाई बता दी |सन्त-महात्मा स्वभाव से ही परमार्थी होते हैं |

उस बहन ने पूछा -क्या ड्राइविंग जानते हो ,उसने हाँ में उत्तर दिया |

उस बहन ने उसकी व्यवस्था कर दी और बाद में इस व्यवस्था में स्थायित्व भी आ गया |

अब इसे चमत्कार तो मानना ही चाहिए क्यूंकि उस युवक का काम तो छूट ही चुका था | खालीपन दूर करने के लिए सेवा का विकल्प उसने चुना अन्यथा बिना काम किये तो वहां किसी का गुजारा ही नहीं है |

लेकिन चमत्कार भी कैसे मानें चूंकि सत्गुरु बाबा हरदेव सिंह जी चमत्कार की बात कभी नहीं करते थे |चमत्कार का आश्वासन वे कभी किसी को नहीं देते थे यह अलग बात है कि गुरु में चमत्कार करने की क्षमता होती है लेकिन वे हमेशा उद्यम करने की ही प्रेरणा देते थे | 

यह एक अलग बात है कि खुद मैंने अपने जीवन में उन्हें घटित होते देखा है |