अध्यात्म हमारे मन में स्थापित रहे तभी भक्ति हमारा कर्म बनेगी

 रामकुमार सेवक    

मन में जब भी किसी के प्रति विपरीत भाव आये तो हम प्रायः उसे निकम्मा घोषित कर देते हैं जबकि जब हम जल्दबाजी करते हैं तो किसी के भी प्रति अन्याय होने की आशंका ज्यादा होती है |

इस स्थिति में जबकि हम खुद को अध्यात्मिक मानते हैं तो हमें ज्यादा जिम्मेदार और सकारात्मक होना चाहिए |

गिलास को आधा खाली घोषित करने की बजाय उसे आधा भरा मान लेना चाहिए |कहने का भाव कि कि उसे benefit of doubt देना चाहिए |न्यायालयों में अक्सर संदेहास्पद अभियुक्तों को संदेह का लाभ देकर छोड़ दिया जाता है |

पिछले दिनों सत्संग में एक महात्मा किसी के भी प्रति उदार भाव रखने का आग्रह रखने की बात कह रहे थे |

देखिये किसी को भी देखकर हममें प्रायः दो प्रकार के भाव उमड़ सकते हैं |उनमें से एक भाव व्यक्ति के विरुद्ध हो सकता है |मन में यदि किसी व्यक्ति को विपरीत कर्म करते देखें तो हम उसके प्रति विपरीत धारणा बना सकते हैं |जब कि  हम यदि स्वयं को अध्यात्मिक अथवा धार्मिक महसूस करते हों तो किसी अनजान के प्रति हम घोर विरुद्ध  नहीं हो सकते |

हो सकता है वह व्यक्ति वैसा हो ही नहीं जैसी हम उस व्यक्ति के प्रति धारणा बना बैठे हों |

किसी अनजान के प्रति ऐसी धारणा को हम पूर्वाग्रह कहते हैं |अंग्रेजी में हम इसे prejudice कहते हैं |


कोई भी मानवता प्रेमी व्यक्ति किसी अनजान इंसान का विरोधी नहीं हो सकता क्यूंकि उसके भीतर की मानवता उसे संदेह का लाभ जरूर देगी जैसे महात्मा विवेक शौक़ जी ने अपने एक वक्तव्य में एक बार hate लिस्ट(ऐसे व्यक्तियों की सूची ,जिनसे हम नफरत करते हों) |बनाने की बात कही थी |उनका कहना था कि हम अपने मन में किसी न किसी के विरुद्ध नफरत प्रायः रखते हैं जबकि नफरत से किसी का भी भला नहीं होता | 

विवेक जी ने दिल्ली के ग्राउंड न.8 में ऐतिहासिक हिट लिस्ट का सन्दर्भ देते हुए उसे हेट लिस्ट के साथ जोड़ दिया था |उन्होंने हास्य के साथ आत्म निरीक्षण की ओर हमें प्रेरित किया था |

उन्होंने बोलते-बोलते नफरत के पाँच -सात कारण गिनाये -

उन्होंने संगत का भी उदाहरण देते हुए कहा कि हर आदमी प्रायः आगे बैठना चाहता है और सेवादल के जवान भीड़ बढ़ने से रोकने के लिए लोगों को वहाँ बैठने से  हतोत्साहित करते हैं |कुछ लोगों के लिए यह भी hate लिस्ट में नाम जुड़ने का कारण हो सकता है |

पूरी list  बनाने के बाद विवेक जी ने कहा -अब hate list

को कम करना शुरू कीजिए |हमें लगेगा सेवादल के जवान तो अपनी dutyका पालन कर रहे हैं इसलिए उनके प्रति नफरत क्यों की जाए ?

सन्त -महात्मा किसी से भी नफरत नहीं किया करते क्यूंकि यह उनका काम ही नहीं है | 

इस विचार को और स्पष्ट करते हुए युवा विचारक ने निरंकारी राजमाता जी का एक प्रसंग सुनाते हुए कहा कि निरंकारी राजमाता कुलवंत कौर जी जब अपनी एक प्रचार यात्रा के दौरान दुबई में थी तो एक दिन जब वे बालकनी से नीचे देख रही थीं तो उन्होंने बाहर भारतीय श्रमिकों को काम करते देखा |

तेज धूप में उन्होंने श्रमिकों को काम करते देखा |दुबई में यूँ भी बहुत गर्मी पड़ती है |

राजमाता जी ने इन श्रमिकों को कड़ी मेहनत करते देखा तो अरदास की कि सच्चे बादशाह हम सूरज की तपिश को तो कुछ नहीं कह सकते |आप (निरंकार) से ही अरदास है कि इन लोगों को राहत मिल जाए |

अभी अरदास किये हुए दो-तीन दिन ही हुए थे कि वहॉँ के महापुरुषों ने बताया कि वहॉँ की सरकार ने वहॉँ काम कर रहे श्रमिकों को राहत दी है |उनके भोजनावकाश के समय में परिवर्तन किया गया है |उनके भोजनावकाश को दोपहर से घटाकर शाम के समय में परिवर्तित कर दिया गया है |

इस परिवर्तन से श्रमिकों को राहत मिल गयी |

भक्ति करे पाताल में परगट करे आकाश, इस कहावत को इस प्रकार भी सबने सिद्ध देखा |बाबा अवतार सिंह जी ने निरंकारी राजमाता की भक्ति और परोपकार की वृत्ति को भली भांति महसूस किया था |उन्होंने उन्हें अनेक वरदान दिए थे ताकि दुनिया का भला हो |

निरंकारी राजमाता जी कहा करती थी-जिस घर में माँ दुखी है उस घर से  बीमारी नहीं जाती |जिस घर में बेटी दुखी है उस घर से क्लेश नहीं जाता |जिस घर में बहु दुखी है उस घर से गरीबी नहीं जाती |

इस प्रकार हम लोगों को उन्होंने सकारात्मक दृष्टिकोण दिया |