रामकुमार सेवक
द्वैत और अद्वैत और ब्रह्मदर्शन के दो माध्यम हैं |द्वैत में परमात्मा के दो रूप होते हैं -निराकार और साकार |अद्वैत में एक ही रह जाता है |
यह वैसे ही जैसे शरबत और सामान्य पानी अलग-अलग हैं लेकिन मूलतः दोनों एक अर्थात पानी ही हैं |
पानी रे पानी तेरा रंग कैसा जवाब है-जिसमें मिला दो लगे उस जैसा अर्थात दो नहीं ,एक ही है |
एक बहुत सुन्दर प्रसंग अक्सर मुझे आनंद से भर देता है |कहते हैं कि राधा भीतर है |श्री कृष्ण दरवाजा खटखटाते हैं -भीतर से आवाज़ आती है -कौन है ?श्री कृष्ण कहते हैं-मैं हूँ |
दरवाजा नहीं खुला ,भीतर से आवाज़ आयी -मैं के लिए यहाँ कोई स्थान नहीं है |
श्री कृष्ण हैरान हो गए कि यह क्या हुआ ?श्रीकृष्ण के लिए राधा का द्वार न खुले यह भी एक रहस्य है |
दरवाजा फिर खटखटाया गया |भीतर से आवाज़ आयी -कौन है ?
आवाज़ आयी -कृष्ण के लिए यहाँ कोई स्थान नहीं है |
यह भगवान के लिए दोहरे आश्चर्य की बात थी |राधा के लिए तो कृष्ण का पूरा हृदय खुला था फिर कृष्ण को न पहचाने ,ऐसा हो नहीं सकता |
द्वार फिर खटखटाया गया |फिर आवाज़ आयी - कौन है ?कृष्ण ने कहा-तू ही है और द्वार खुल गया |
मैं के लिए द्वार नहीं खुला |मैं के लिए परमेश्वर का द्वार कभी नहीं खुलता |मैं के लिए तो अहंकार का ही द्वार खुल सकता है |
जहाँ अहम है वहाँ तो कृष्ण के आगमन की कोई गुंजाईश नहीं है |
एक राधा ही है जिसके द्वार को कृष्ण खटखटाते हैं |राधा की अपनी महिमा है ,वह किसी शरीर की महिमा नहीं है बल्कि वह शुद्ध प्रेम की महिमा है |
कहते हैं कि एक बार किसी ने देखा कि कृष्ण दर्द से कराह रहे हैं |कृष्ण तो लीलाधारी हैं फिर दर्द से कराह भी सकते हैं |
यह तो वैसा ही हुआ जैसे उस्ताद शायरमान सिंह जी मान ने एक शेअर सुनाया था-
मुश्किल कुशा के सामने हैं मुश्किलें भी रू ब रू ,इस तरह लगता है जैसे इन दिनों डरते हैं आप |
कहने का भाव -कृष्ण तो दर्द निवारक हैं ,दर्द की यदि मूर्ति कोई बनाये तो श्रीकृष्ण उस मूर्ति के भंजक हैं और वही पीड़ा से कराह रहे हैं |
इस दर्द का इलाज क्या है ?एक गीत याद आ रहा है-तुम्हीं ने दर्द दिया है ,तुम्हीं दवा देना |
कृष्ण ने बताया कि यदि कोई भक्त उन्हें अपना चरणामृत दे तो लाभ हो सकता है |
कोई भी अपने आपको इस योग्य नहीं समझता था कि कृष्ण के लिए चरणामृत बना सके |
लेकिन अध्यात्म में वचन की बहुत महत्ता है |वचन तो यही आया था |
कृष्ण उस युग के परम गुरु थे |उन्हें कहते थे-सोलह कला सम्पूर्ण
कला की दुनिया में कलाओं की अधिकतम संख्या सोलह ही है |सत्रह अथवा अठारह कलाओं वाला तो कोई है नहीं प्रश्न उठा ,फिर कौन उन्हें चरणामृत दे |
राधा को जब पता लगा कि कृष्ण को दर्द है और उनके लिए किसी को अपना चरणामृत देना होगा ,सब भयभीत थे कि कृष्ण के लिए अगर किसी ने चरणामृत बनाया तो कहीं पैर ही न गल जाये लेकिन राधा को जरा भी डर न लगा ,वह बोली -देर मत करो ,चरणामृत बनाओ और ले जाओ ,कृष्ण को जरा भी कष्ट नहीं होना चाहिए |
उसे डराया गया कि कृष्ण के लिए चरणामृत देने की जो सोचता है वह तो अहंकारी है |
ऐसे ऐसे तर्क तो समझदार लोग देते ही रहते हैं इसीलिए राधा और उनकी सखियाँ कहती हैं-ऊधौ मन न भये दस बीस।एक हुतौ सो गयौ स्याम सँग, कौ अवराधै ईसऊधो मन नाहीं दस-बीस ,
जिसके पास मन है ही नहीँ,उसको किसका और कैसा डर
राधा का ही चरणामृत कृष्ण के काम आया |
यहाँ द्वैत नहीँ अद्वैत है |इसी अवस्था में अनहद की गूँज सुनाई पड़ती है क्यूंकि वहाँ सोने का बर्तन ही है |
मुझे लगता है कि श्री कृष्ण का दर्द हटाने के लिए तो निवारक यन्त्र राधा ही दे सकती है चूंकि उसे अपने पैर के अंजाम का कोई डर नहीँ |उसे तो कृष्ण की कुशलता चाहिए |
हम लोग अक्सर गुरु-गुरु करते रहते हैं |बाबा हरदेव सिंह की वक़्त में मैं अक्सर कहता था कि मैं तो गुरु-गुरु कहता रहता हूँ |और चाहता हूँ कि मेरी पहचान बाबा जी के सेवक के रूप में हो लेकिन क्या बाबा जी मुझे अपने विश्वस्त शिष्य होने का प्रमाण पत्र दे सकते हैं लेकिन मुझे खुद ही खुद पर विश्वास नहीँ हुआ |
मेरा अंतर्मन ही मुझे प्रमाणित नहीँ करता |राधा को ऐसी कोई शंका नहीँ थी क्यूंकि वहाँ पूर्ण एकत्व था |इस प्रसंग में जो रस है वह अनिर्वचनीय है |धन निरंकार जी
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